Tuesday, November 9, 2010

कुछ बातें / अवाँ गार्दिज़्म - 2. संगीत और भौतिकी


संगीत और भौतिकी के ये अवांगार्द


संगीत के बारे में असद ज़ैदी की टिप्पणी के संदर्भ में ख़्याल आता है भौतिकी का. उसमें भी कॉस्मोलॉजी को लें. आइन्श्टाइन जिस चीज़ पर ठिठक गए थे उसे उनके बाद यूं तो कई बुलंद वैज्ञानिकों ने रह रह कर उठाने समझाने की कोशिश की लेकिन उस बात को सबसे स्पष्ट तार्किकता और खरी ज़िद के साथ कहने वाले निकले स्टीफ़न हॉकिंग. ईश्वर पासे नहीं खेलता कि आइन्श्टाइन की बात पर हॉकिंग ने कहा कि वो सिर्फ़ खेलता है बल्कि उन्हें ऐसी जगह बिखेर भी देता है कि वे ढूंढें नहीं मिलते. ईश्वर की खिल्ली उड़ाने का इरादा दोनों महानुभावों में से किसी का भी नहीं था. लेकिन ब्रह्मांड के रहस्यों को नापने के लिए अपना फीता लेकर जाने का उन्हें कोई बहुत शौक रहा होगा. खैर...


आइन्श्टाइन तोड़फोड़ मचाने से ज़रा घबराए आख़िर में लेकिन हॉकिंग अपनी उस लगभग मिथकीय हो चुकी लटकी हुई गर्दन और उस विख्यात इलेक्ट्रॉनिक चेयर पर बैठे हुए ऐसे ऐसे फ़लसफ़े ला रहे हैं कि ब्रह्मांड को समझने के औजार खुलने के साथ ही पुराने से पड़ते हुए दिखते हैं. हॉकिंग का संगीत ज्ञान आइन्श्टाइन के संगीत ज्ञान से ज़ाहिर है आगे का रहा है. मोत्सार्ट पर उनकी विलक्षण पकड़ है. संगीत को वो भौतिकी का भीतर का कमरा मानते हैं. पहल–90 (इसके बाद ही ज्ञानजी ने पहल बंद करने की सूचना सबको रवाना की थी) में हॉकिंग के एक इंटरव्यू का अनुवाद था. उसमें हॉकिंग ने जो कहा वो कला की उन उद्दाम ऊंचाइयों की झलक भी दिखाने की कोशिश करता था जहां संगीत और भौतिकी जैसी दो जटिल दुनियाएं एक बिंदु पर थिरकती रहती हैं.


हॉकिंग ज़ाहिर है उसी बिंदु की तलाश में कुर्सी पर बैठे बैठे भटक रहे हैं. आइन्श्टाइन अपने आखिरी दिनों में सिर्फ़ अपने फ़लसफ़े को सही ठहराने की कोशिश कर रहे थे बल्कि वो एक समांतर, समांतर से ज़्यादा बहुत बैचेनी और कामना के साथ कोशिश ये कर रहे थे कि अनिश्चितता के सिद्धांत को सही ठहराने वाला कोई सूत्र देते जाएं. वो ख़ुद को ही झुठलाने को तीव्रता से बेताब थे. कोई नहीं जान सकता कि आइन्श्टाइन जब गए तो खालीपन के कितने भयानक अंधकार के साथ. वो बहुत ज़िद्दी थे. अड़े रहे. ब्रह्मांड एक अदृश्य नियमावली से बंधा है, आइन्श्टाइन ये नहीं मानते हुए जाना चाहते थे.


लेकिन उन्होंने यही माना, वो संगीत के उस आखिरी नोट पर रुक गए कि इस नोट के बाद फिर से शुरू करना पड़ेगा. वो जिसे ख़त्म करना चाहते थे पर वो जारी था. संगीत वॉयलिन के तारों पर नहीं उठा तो वो ख़त्म नहीं हुआ. वो कहां पर ठिठका हुआ है, हॉकिंग ने इसे पकड़ लिया. यही उनकी करामात है. इस तरह हॉकिंग ने भौतिकी और संगीत दोनों की जटिलता के नोट तैयार किए.


ब्रह्मांड भौतिकी के वो अवांगार्द है. सोचिए एक अवांगार्द अपनी क़िस्म के आइन्श्टाइन थे जो साइंस की एक अविश्वसनीय झक में घर का पता भी भूल सकते थे और ख़ुद को भी. और एक अवांगार्द हॉकिंग हैं जिनकी इस मोटर न्यूरान बीमारी को देखते हुए चिकित्सा के धुरंधरों ने कह दिया था कि अव्वल तो वो जीवित नहीं बचेंगें और अगर बच गए तो संतान तो कभी नहीं पैदा कर पाएंगें. हॉकिंग के तीन बच्चे हैं और अब तो वो नाती पोतों वाले हैं. अपनी ज़िंदगी के क़रीब तीसरे दशक से कुर्सी पर बैठा एक इंसान आख़िर कौन होगा. वो तो कोई जिद्दी अवांगार्द ही होगा. और किताबें लिखता रहता होगा और चर्च और धर्म और पारंपरिक विज्ञान को तंग करता रहता होगा.


ये भी नोट करने वाली बात है कि इन वैज्ञानिकों के उत्पाती मिज़ाज को बाज़ार की शक्तियां नहीं नाथ पाई हैं. हॉकिंग तो एक बार ऐसे प्रयोग में जा घुसे जहां उन्हें शून्य गुरुत्व का अहसास दिलाया जाना था. मेरे विचार में ये शायदएस्थेटिक पोज़ीशननहीं होगी. उनका अवांगार्द ही है जो नोबेल वालों की अभी उनपर कोई दृष्टि नहीं जा रही. पर अगली बार उन्हें संयोग से नोबेल मिल जाए तो आप ये कहें कि अब काहे का अवांगार्द. उन्हें नोबेल मिलने दीजिए फिर उनके नोबेल भाषण का इंतज़ार कीजिए.


शिवप्रसाद जोशी 9.11.2010

1 comment:

  1. लाल्टू और शिवप्रसाद जोशी ने मामले को भौतिकी में ढकेल कर ठीक किया। मैं उनके कहे में कुछ जोड़ना चाहता हूं जो हो सकता है थोड़ा भटका सा भी लगे। इशारा मैं यह करना चाहता हूं कि बहुत दिन पहले की बात नहीं है जब ब्रह्मांड की व्युत्पत्ति के कारनामे में हॉकिंग ईश्वर की भूमिका को नकार नहीं पा रहे थे। लेकिन अब अपने हाल के विमर्शों में वह ईश्वर की कोई भूमिका होने से इंकार कर रहे हैं । ऐसा वह इति सिद्धम वाले अंदाज में मान रहे हैं । मतलब कि एक ऐसा प्रत्यय जो तर्क और तथ्यों की सरणि से आयत्त हो न कि किसी तरह के अज्ञेयत्व की कोख से यानी कि जिसे हासिल करने की दार्शनिक सुविधा न उठायी गयी हो। कॉस्मॉस में किसी ईश्वरीय भूमिका को न देख पाना खास तौर पर एक वैज्ञानिक द्वारा जो आसानी से ईश्वरविहीन होने के लिये उतावला नहीं था हमारे समय की सबसे बड़ी परिघटना है जिसको इसी रूप में देखने वाले कम हैं । मेरे खयाल से यहां सत्य को नैतिक और दार्शनिक रूप में ही नहीं पाया गया है बल्कि एक ऐसे प्रत्यय के तौर पर जहां कुछ उपकल्पनाएं हैं लेकिन रास्ता विज्ञान का भी है । तो हॉकिंग मानते हैं कि कॉस्मॉस खुद को पैदा कर सकने में सक्षम है । इस तरह वह ईश्वर का निरसन करते हैं । कहना यह है कि हॉकिंग ने जो हासिल किया है वह भले ही अवांगार्द लगे वह हासिल किया गया है एक पद्धति के ज़रिये । लेकिन उस पद्धति में ही शायद अवांगार्द का दुस्साहस रहा हो जो बेशक हमेशा न दिखे । मैं समझ रहा हूं कि मैं किस पतली धार पर चल रहा हूं । तो कई बार अवांगार्द की विलक्षणता दिख जाती है लेकिन कई बार वह किसी का धैर्य बनकर भी अंतर्लय की तरह मौजूद रहती है । कविता में भी हो सकता है ऐसा होता हो, होता ही है ।
    देवी प्रसाद मिश्र 

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